सनी देओल और अमीषा पटेल की मोस्ट अवेटेड 'गदर 2 शुक्रवार को रिलीज हो गई है. इस फिल्म को लेकर जबरदस्त बज बना हुआ है इसलिए एडवांस बुकिंग भी जमकर हुई है. यह साल 2001 में आई 'गदर: एक प्रेमकथा' का सीक्वल है. यदि आपने 'गदर' नहीं देखी तो कोई बात नहीं, 'गदर 2' की शुरुआत में ही पिछली कहानी की पूरी झलक दिखाई गई है. आइए, जानते हैं फिल्म कैसी है....
एक्टिंग : तारा सिंह के रूप में सनी देओल फिर छा गए हैं. उन्होंने पिता के जज्बातों को जितनी भावुकता से जिया है, उतनी ही जांबाजी से एक देशभक्त के किरदार को जीवित किया है. अमीषा के पास रोने-धोने, शरमाने से ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन उन्होंने अपना काम बखूबी किया है. 22 साल बाद भी उनका अंदाज बिल्कुल नहीं बदला है.. जीते के रोल में उत्कर्ष शर्मा को काफी स्क्रीन टाइम मिला है. लेकिन सनी देओल के बाद यदि सबसे ज्यादा प्रभावित किसी ने किया है, तो वह हैं विलेन मनीष वाधवा, उन्होंने अमरीश पुरी की कमी महसूस नहीं होने दी... खूंखार मेजर के रोल में उन्होंने परफेक्ट और सधी हुई एक्टिंग की. अन्य कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है.
कहानी - फिल्म साल 1971 के लाहौर में सेट की गई है, कहानी शुरु होती है, नाना पाटेकर की आवाज से, वह प्रीक्चल के साथ-साथ किरदारों का बैकग्राउंड बताते हुए तारा सिंह (सनी देओल) और सकीना (अमीषा पटेल) की जिंदगी में ले जाते हैं. पठानकोट में रहने वाले इस कपल का बेटा जीते (उत्कर्ष शर्मा) अब बड़ा हो गया है. तारा सिंह चाहता है कि जीते पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने, लेकिन जीते के सिर पर एक्टिंग का भूत सवार है. इससे नाराज तारा उसे पढ़ाई के लिए होस्टल भेज देता है. फिर बॉर्डर पर कुछ ऐसे हालात बनते हैं कि कर्नल रावत (गौरव चोपड़ा) के कहने पर तारा सिंह आर्मी की मदद करता है. लेकिन ऐसा द्विस्ट आता है कि उसका बेटा पाकिस्तान के मेजर जनरल हामिद इकबाल (मनीष वाधवा) की चंगुल में फंस जाता है, वह पहले ही इतकाम की आग में जल रहा है. क्योंकि तारा सिंह उसकी रेजीमेंट के 40 जवानों को मारकर सकीना को हिंदुस्तान ले गया था. तारा सिंह क्या करेगा, कैसे बेटे को बचाएगा, इसे प्रत्यक्ष देखना ही बेहतर है.
लेखन निर्देशन : 'मदर' फेम अनिल शर्मा ने सीक्वल का भी निर्देशन किया है. उनकी कहानी में नयेपन का अभाव है, मगर स्वाधीनता दिवस के ठीक पहले जिसकी दरकार थी, वही उन्होंने दर्शकों को परोसा है. शर्मा ने 'गदर' के ओरिजिनल फ्लेवर को बरकरार रखा है. फिल्म के डायलॉग इतने जबरदस्त है दर्शक कभी तालियां बजाने लगते हैं, तो कभी सीटियां कहानी की कमजोरी डायलॉग ही पूरा करते हैं, तारा सिंह का अंदाज भी दर्शकों में जोश भरता है. फिल्म एक्शन, इमोशन्स और देशभक्ति का परफेक्ट पैकेज है. दर्शक 'हिंदुस्तान ज़िंदाबाद' के नारे लगाने से भी नहीं चूकते हैं. इस बार भी हैंडपंप वाला सीन है, लेकिन उसे उखाड़ने से पहले ही पाकिस्तानी दुश्मनों की जो हालत होती है, उससे मजा आ जाता है. मिथुन का म्यूजिक अच्छा है. सिनेमैटोग्राफी भी शानदार है.
प्लस प्वाइंट्स : सनी देओल का जबरदस्त अंदाज, डायलॉग, एक्शन, इमोशन, देशभक्ति और गीत-संगीत.
माइनस प्वाइंट्स : कहानी में नएपन का अभाव, एडिटिंग सारांश : स्वतंत्रता दिवस से ठीक पहले एक्शन और इमोशन के साथ-साथ - देशभक्ति के तड़के वाली इस मसाला एंटरटेनर को पूरे परिवार के साथ जरूर देखें, सनी देओल के डायलॉग और अंदाज के लिए भी इसे देख सकते हैं.
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